भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाली ब्याई जी को / 1 / राजस्थानी
Kavita Kosh से
राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
...वाला मन मस्ताना, तेल मेट से माथो न्हायो, ऊपर जड़ियो बोर गुंथायो।
पाटी पर पान चिमकायो रे शौकीन कहायो रे,
हां हां नार शौकीन कहावे ऐसी बात सुनने में आवे।
कीनी पाती सुरमो कालो, गालां ऊपर उगियो तारो,
मुखड़ा पर चंदा उजियारो रे। शौकीन कहावे...
मन मस्तानी असल दिवानी, तिरछी झांके मरदां कानी,
शरम न मन में ल्यावे रे। शौकीन कहावे...।