गिनती मुझको आई / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
जब से मुझको गिनना आया
गिनती करना मुझको भाया
गिनती ही रहती हूँ सब कुछ
चलते-फिरते घर में, बाहर
आँगन के कंडे और गमले
दादा की धोती और गमछे
साइकल की गिनती हूँ ताड़ी
गाँव में टोटल कितनी गाड़ी
गिनती ही रहती हूँ सब कुछ
लेकिन पत्ते पेड़ के गिनूँ तो आख़िर कैसे मैं
क्योंकि वे हर दम हवा में हिलते-डुलते रहते हैं
जब से मुझको गिनना आया
गिनती करना मुझको भाया
गिनती ही रहती हूँ सब कुछ
गली–मोहल्ले घूम-घूम
हस्पताल में रखी शीशियाँ
विद्यालय में लगी फ़र्शियाँ
हर घर में बिजली के खटके
गिने कुम्हार के सारे मटके
लेकिन तारे आसमान के गिनूँ तो आख़िर कैसे मैं
क्योंकि मेरी आँखों में नींद चढ़ने लगती है
जब से मुझको गिनना आया
गिनती करना मुझको भाया
गिनती ही रहती हूँ सब कुछ
गिनती बड़ा मज़े का खेल
मास्टर जी की सभी किताबें
बस्ते, जूते और ज़ुराबें
गिने खेत के सारे गन्ने
पापा की फ़ाइल के पन्ने
गिनती ही रहती हूँ सब कुछ
लेकिन वे मनमौजी बादल गिनूँ तो आख़िर कैसे मैं
क्योंकि बादल उड़-उड़कर आपस में घुल-मिल जाते हैं