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गिलहरी / उषा यादव
Kavita Kosh से
प्यारी–प्यारी एक गिलहरी।
मेरी दोस्त बन गई गहरी।
दौड़ लगाती शाखाओं पर।
उपर जाकर, नीचे आकर।
मैं खिड़की के पास अकेली।
खड़ी होऊँ ले खुली हथेली।
वह धीरे से आगे आए।
किशमिश के दाने चुन खाए।
बिना हिले मैं ठहरूँ जब तक।
किशमिश वह चुनती है तब तक।
लो, सब खाकर फौरन खिसकी।
अब वह दोस्त कहाँ, कब किसकी?
डरती है, छोड़ो, जाने दो।
किशमिश खाने ही आने दो।
और दोस्ती होगी गहरी।
मुझको देगी प्यार गिलहरी।