भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिलहरी प्रसन्न है / नारायणलाल परमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गिलहरी प्रसन्न है,
जामुन की डाल पर!

जो फल मीठा लगता,
बस उसको खाती है!
नीचे खरगोश के-
लिए कुछ गिराती है।

कभी-कभी नाचती,
पूँछ को सम्हालकर!
ध्यान नहीं देती है,
कौए की काँव पर,
करती गुस्सा, उसके
मतलबी स्वभाव पर।

सुआ मगन है उसकी-
मतवाली चाल पर!

नहीं पकड़ में आती,
बेहद यह चंचल है,
हरे-भरे पेड़ों पर
मचा रही हलचल है।

इसको रखना मुश्किल,
पिंजरे में पालकर!