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गीत-3 / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
जितनी बार लड़ेंगे दुख से
हम उतने ही वीर बनेंगे
राहों में चाहे शूल मिलें
मन के कोमल फूल जलें
जितनी बाधाएँ होंगी पथ में
हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी बार...
दुख के बादल तो छाएँगे
जल विपदा का बरसाएँगे
एक दिन दुख ओ` पीड़ा
अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार...
1987