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गीत-4 / केदारनाथ अग्रवाल
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टूटें न तार तने जीवन-सितार के
ऎसा बजाओ इन्हें प्रतिभा की ताल से,
किरनों से, कुंकुम से, सेंदुर-गुलाल से,
लज्जित हो युग का अंधेरा निहार के ।
टूटें न तार तने जीवन-सितार के
ऎसा बजाओ इन्हें ममता की ज्वाल से
फूलों की उंगली के कोमल प्रवाल से,
पूरे हों सपने अधूरे सिंगार के ।
टूटें न तार तने जीवन-सितार के
ऎसा बजाओ इन्हें सौरभ के श्वास से,
आशा की भाषा से, यौवन के हास से,
छाया बसन्त रहे उपवन में प्यार के ।