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गीत-माधवी (प्रथम पद) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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लहरों के कलरव से शीतल
इस छाया के नीचे दो पल,
मैं थके हुए ये पद पसार,
सुन लूँ वह ध्वनि जो बार-बार,
आती है निराश प्राणों से चल ।
(गीत माधवी, पृष्ठ 7)