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गीत 12 / तेसरोॅ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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काम सकल सद्ज्ञान नसावै
जैसे दर्पण ढंकल धूल से, रूप दरस नै पावै।
जैसें धुँआ मनेॅ सन चंचल, आगिन के ढँकि राखै
जैसे गर्म ढंकै झिल्ली, सूरज के बादल ढाँकै
काम-अगिन जारै विचार-शुभ सद्गुण सहज दुरावै
काम सकल सद्ज्ञान नसावै।
इन्द्रिय मन अरु बुद्धि अपावन, सब में काल निवासै
जीव राम तजि भजै काम के, दुःचरित्र उद्भासै
हे अर्जुन! बाँधौ इन्द्रिय के, जे विकार उपजावै
काम सकल सद्ज्ञान नसावै।
ज्ञान और विज्ञान विनाशक, मन-इन्द्रिय बड़ पापी
अरु निश-वासर जरै काम में देह-जीव संतापी
मन बौरैलोॅ रूप देखि कै, हेत वचन नै भावै
काम सकल सद्ज्ञान नसावै।