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गीत 1 / पन्द्रहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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श्री भगवान उवाच-

हय संसार वृक्ष पीपल के, आदि पुरुष ही मूल छिकै
ब्रह्म रूप शाखा-उपशाखा, उर्धव स्वरूप समूल छिकै।

वेद पात छिक, पात-पात में
उत्तम ज्ञान बसै छै,
ज्ञानी जन संसार वृक्ष के
मूल सहित समझै छै,
हौ पीपल जे सूक्ष्म रूप छिक, हय पीपल स्थूल छिकै
हय संसार वृक्ष पीपल के, आदि पुरुष ही मूल छिकै।

तीनों गुण जल रूप सदा
हय पीपल के सींचै छै,
विषय-भोग कोपल छिक एकरौ
जल पावी गुजरै छै,
उप-शाखा के पर-शाखा हय, विविध योनि-स्थूल छिकै
हय संसार वृक्ष पीपल के, आदि पुरुष ही मूल छिकै।

शब्द-रूप-स्पर्श-गंध-रस
एकरा से टपकै छै,
अहंकार वासना मोह
जे जड़ के उपशाखा छै
हय प्रतीक के रूप वृक्ष छिक, नै कि हय स्थूल छिकै
हय संसार वृक्ष पीपल के, आदि पुरुष ही मूल छिकै।