गीत 8 / प्रशान्त मिश्रा 'मन'
सुधियों पर
सावन बरसा है तन भीगा री! मन भीगा है
बूँदों की सरगम ने फिर हम दोनों की सुधि का गीत पढ़ा।
कह क्यों तूने री मधुमासी! सावन से रिस्ता तोड़ लिया.?
तेरे सूखे से यौवन का उस ने तो हर पल साथ दिया।
वो और अधिक अब रोता है तेरी बिछुड़न की पीड़ा में-
उसके रोने के फलस्वरूप अब पूरा आँगन भीगा है।
सुधियों पर सावन बरसा है तन भीगा री! मन भीगा है।
बूँदों की सरगम ने ...
बूँदों से बातें करता मैं, मानों तो यह चालाकी है।
वे धुलती हैं मेरे आँसू कह पीड़ा! क्या एकाकी है.?
रोता है शायद अम्बर भी रिमझिम की धुन में सिसक-सिसक-
जब तेरा जीवन भीगा है! मेरा भी जीवन भीगा है।
सुधियों पर सावन बरसा है तन भीगा री! मन भीगा है।
बूँदों की सरगम ने ...
मैं तेरी आँखों का काजल पर तुझसे मिलने को तरसा।
तेरे नयनों के कोरे तक आ-आकर अम्बर से बरसा।
धरती पर , अम्बर के आँसू तुझमें मेरी सुधि के आँसू
भीगे मौसम के कारण ही नयनों का अंजन भीगा है।
सुधियों पर सावन बरसा है तन भीगा री! मन भीगा है।
बूँदों की सरगम ने ...