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गीत 8 / सोलहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
अभिमानी अपना के समझै, हम बड़का धन वाला
सब विधि समरथवान पुरुष हम, परिजन-पुरजन वाला।
हम धर्मी, हम सब सुख भोगी
यग कर्ता हम दानी,
हम कुलवंत, संत, यश वाला
हम ज्ञानी-विज्ञानी,
जनबल, धनबल और बाहुबल, अगणित आयुध वाला
सब विधि समरथवान पुरुष हम, परिजन-पुरजन वाला।
अपना के सब कुछ समझै छै
अज्ञानी मोहित जन,
चंचल-चित्त, विषय के भोगी
असुर प्रवृत्ति, भ्रमित जन,
चरित-अपवित, नरक पथ गामी, और कुटिल मन वाला
बाहर से तन देव पुरुष सन, भीतर से मन काला।
यग करै जग में अपना के
उत्तम दिखलावै लेॅ,
भेष संत के धरै जगत में
मिथ्या यश पावै लेॅ,
ठाम-ठाम पाखण्ड रोपि केॅ टाँगै चन्दन माला
जनबल-धनबल और बाहुबल, अगणित आयुध वाला।