भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत के जितने कफ़न हैं / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिंदगी की लाश
ढकने के लिए
गीत के जितने कफ़न हैं
हैं बहुत छोटे ।
रात की
प्रतिमा
सुधाकर ने छुई
पीर यह
फिर से
सितारों सी हुई
आँख का आकाश
ढकने के लिए
प्रीत के जितने सपन हैं
हैं बहुत छोटे।
खोज में हो
जो
लरजती छाँव की
दर्द
पगडंडी नहीं
उस गाँव की
पीर का उपहास
ढकने के लिए
अश्रु के जितने रतन हैं
हैं बहुत छोटे।