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गीत नवगीत सब सुनाने लगा / नन्दी लाल
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गीत नवगीत सब सुनाने लगा।
फूल जब खुल के मुस्कुराने लगा।
देखकर पांखुरी गुलाबों की,
फाग आतुर भ्रमर सुनाने लगा।
ओढ़ चादर बसन्त पीली सी,
रंग रस भीग के नहाने लगा।
कोकिला ने सुना दिया कू कू
वात पछुवा चमर डुलाने लगा।
मैं नहीं मैं नहीं रहा बस में,
कौन मन को मेरे सताने लगा।
साथ क्या क्या हुआ बटोही के,
पंथ को रोककर बताने लगा।
हो गया है हरेक पागल सा,
दीप नव वर्ष के जलाने लगा।
देखता मैं रहा ठगा होकर,
काम को, क्रोध को ठिकाने लगा।
शेष कुछ भी नहीं रहा तनको,
स्नेह में डूबकर सुखाने लगा।