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गीत बनल / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
ना होखे बरदाश
करे छटपट मन
गीत बनल।
बिजली के तेजी मचले
ना डेग रहे धरती
हरियाए लागे चिंतन के
मरुआइल परती
सम्मत जरते
ताल ठोकाइल
हिरदे प्रीत भरल।
समहुत के सपना टूटल
अँधियारा मन में अब
प्रभुता के धरती सिकुरल
जिनिगी खुद से गायब
पँवरे अब बिशवास
सनेहिया तक
पानी पइसल।