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गीत मन का दर्द सहलाते नहीं / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
गीत मन का दर्द सहलाते नहीं
इस शहर के लोग अब गाते नहीं
बेरुख़ी की हम शिकायत क्या करें
ग़लतियों पर दोस्त शरमाते नहीं
आज हर उपदेश उनके नाम है
जो कभी भी पेट भर खाते नहीं
बन गए मंदिर महंतों के क़िले
भक्त मंदिर में शरण पाते नहीं
आपने सुख टाँग रक्खे हैं वहाँ
हाथ मेरे जिस जगह जाते नहीं