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गीत में तुमने सजाया / महेन्द्र भटनागर

गीत में तुमने सजाया रूप मेरा
मैं तुम्हें अनुराग से उर में सजाऊँ !

रंग कोमल भावनाओं का भरा
है लहरती देखकर धानी धरा
नेह दो इतना नहीं, सँभलो ज़रा

गीत में तुमने बसाया है मुझे जब
मैं सदा को ध्यान में तुमको बसाऊँ !

बेसहारे प्राण को निज बाँह दी
तप्त तन को वारिदों-सी छाँह दी
और जीने की नयी भर चाह दी

गीत में तुमने जतायी प्रीत अपनी
मैं तुम्हें अपना हृदय गा-गा बताऊँ !