भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत स्वयं बन जायेंगे हम / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाते हैं हम गायेंगे हम मन की तान सुनायेंगे हम।
हर दिल में गूँजेंगे ऐसे गीत स्वयं बन जायेंगे हम।

हमको ज़ोर दिखा सकते हो
बादल बनकर छा सकते हो।
हमको पूरा-पूरा ढककर
दुनिया को भरमा सकते हो।
पर तुम कितनी देर टिकोगे चमकेंगे-चमकायेंगे हम।
हर दिल में गूँजेंगे ऐसे गीत स्वयं बन जायेंगे हम।

हमको आहत कर सकते हो
नाज़ुक पंख कतर सकते हो।
पिंजरे में भी रखकर शायद
थोड़ी दहशत भर सकते हो।
पर जब तक साँसों में साँसें चहकेंगे-चहकायेंगे हम।
हर दिल में गूँजेंगे ऐसे गीत स्वयं बन जायेंगे हम।

हमको तोड़-मसल सकते हो
पैरों तले कुचल सकते हो।
हमसे ज़्यादा ताक़तवर हो
जैसे चाहो दल सकते हो।
पर कैसे छीनोगे ख़ुशबू महकेंगे-महकायेंगे हम।
हर दिल में गूँजेंगे ऐसे गीत स्वयं बन जायेंगे हम।