गीत हमर हइ साँस / राम सिंहासन सिंह
गीत हमर हइ साँस, कभी नी छूटतई एक साथ।
पार करब हम भवसागर भी एकरे धर के हाथ।।
रोज सवेरे उठके पहिले
गावऽ ही हम गीत
रूख-बिरीख सभे नाचऽ हथ
मनुवां में भर प्रीत
चिड़ियन-चुरगुन सब गावऽ हथ
चह-चह चुह-चुह बोल
ईधर-उधर सब देखऽ जग के
बजे मजीरा ढोल,
जो गयतइ वोही रहतइ सब दिन बनल सनाथ।
गीत हमर हइ साँस, कभी नी छूटतई एक साथ।
दुनिया येही बाजार, लगलऽ हव
जगहे-जगहे हार
मौज मनावऽ हथ सब सज के
अप्पन-अप्पन ढार
कौनो केकरो से नऽ कम हौ
सभ्भे हथ पुरजोर
गूँज रहल हे धमक-धमाका
देख चारो ओर,
अईसन में सज्जन हथ बैठल बनके दीन अनाथ।
गीतवे केवल पार लगैतो थाम एकरे हाथ।।
बदरा हे घनघोर कहाँ से
कइसे मिले प्रकास?
कोनो राह न सूझ रहल हे
कौन जगावे आस?
मइया भारती आवऽ, तू ही
जोह रहली हे बाट
पार लगाव ई नैया के
पहुँचे तोहरे घाट
तोहरे देवढ़ी पर अब आके झुकल हमर हे माथ।
गीत हमर हइ साँस, कभी नी छूटतई एक साथ।