भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 6

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(31)
रीति चलिबेकी चाहि, प्रीति पहिचानिकै |
आपनी आपनी कहैं, प्रेम-परबस अहैं,
मञ्जु मृदु बचन सनेह-सुधा सानिकै ||

साँवरे कुँवरके बराइकै चरनके चिन्ह,
बधू पग धरति कहा धौं जिय जानिकै |
जुगल कमल-पद-अंग जोगवत जात,
गोरे गात कुँवर महिमा महा मानिकै ||

उनकी कहनि नीकी, रहनि लषन-सी की,
तिनकी गहनि जे पथिक उर आनिकै |
लोचन सजल, तन पुलक, मगन मन,
होत भूरिभागी जस तुलसी बखनिकै ||