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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 8
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बोले राज देनको, रजायसु भो काननको,
आनन प्रसन्न, मन मोद, बड़ो काज भो |
मातु-पिता-बन्धु-हित आपनो परम हित,
मोको बीसहूकै ईस अनुकूल आजु भो ||
असन अजीरनको समुझि तिलक तज्यो
बिपिन-गवनु भले भूखेको सुनाजु भो |
धरम-धुरीन धीर बीर रघुबीरजूको,
कोटि राज सरिस भरतजूको राजु भो ||
ऐसी बातैं कहत सुनत मग-लोगनकी,
चले जात बन्धु दोउ मुनिको सो साज भो |
ध्याइबेको, गाइबेको, सेइबे सुमिरिबेको,
तुलसीको सब भाँति सुखद समाज भो ||