भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अरण्यकांड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(6).
रागसोरठ
रघुबर दूरि जाइ मृग मार्यो |
लषन पुकारि, राम हरुए कहि, मरतहु बैर सँभार्यो ||

सुनहु तात! कोउ तुम्हहि पुकारत प्राननाथकी नाईं |
कह्यो लषन, हत्यो हरिन, कोपि सिय हठि पठयो बरिआईं ||

बन्धु बिलोकि कहत तुलसी प्रभु भाई! भली न कीन्हीं |
मेरे जान जानकी काहू खल छल करि हरि लीन्हीं ||