भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 9
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
(19)
अयोध्याकी रमणीयता
(वर्षा-वर्णन 1)
राग सूहो
कोसलपुरी सुहावनी लरि सरजूके तीर |
भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर ||
पुर-नर-नारि चतुर अति, धरमनिपुन, रत-नीति |
सहज सुभाय सकल उर श्रीरघुबर-पद-प्रीति ||
श्रीरामपद-जलजात सबके प्रीति अबिरल पावनी |
जो चहत सुक-सनकादि, सम्भु-बिरञ्चि, मुनि-मन-भावनी ||
सबहीके सुन्दर मन्दिराजिर, राउ-रङ्क न लखि परै |
नाकेस-दुरलभ भोग लोग करहिं, न मन बिषयनि हरै ||