भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली उत्तरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 7

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(7)
राम राजराजमौलि मुनिबर-मन-हरन, सरन-
लायक, सुखदायक रघुनायक देखौ री |
लोक-लोचनाभिराम, नीलमनि-तमाल-स्याम,
रूप-सील-धाम, अंग छबि अनङ्ग को री ?||

भ्राजत सिर मुकुट पुरट-निरमित मनि रचित चारु,
कुञ्चित कच रुचिर परम, सोभा नहि थोरी |
मनहुँ चञ्चरीक-पुञ्ज कञ्जबृन्द प्रीति लागि
गुञ्जत कल गान तान दिनमनि रिझयो री ||

अरुनकञ्ज-दल-बिसाल लोचन, भ्रू-तिलकभाल,
मण्डित स्रुति कुण्डल बर सुन्दरतर जोरी |
मनहुँ सम्बरारि मारि, ललित मकर-जुग बिचारि,
दीन्हें ससिकहँ पुरारि भ्राजत दुहुँ ओरी ||

सुन्दर नासा-कपोल, चिबुक, अधर अरुन, बोल
मधुर, दसन राजत जब चितवत मुख मोरी |
कञ्ज-कोस भीतर जनु कञ्जराज-सिखर-निकर,
रुचिर रचित बिधि बिचित्र तड़ित-रङ्ग-बोरी ||

कम्बुकण्ठ उर बिसाल तुलसिका नवीन माल,
मधुकर बर-बास-बिबस, उपमा सुनु सो री |
जनु कलिन्दजा सुनील सैलतें धसी समीप,
कन्द-बृन्द बरसत छबि मधुर घोरि घोरी ||

निरमल अति पीत चैल, दामिनि जनु जलद नील
राखी निज सोभाहित बिपुल बिधि निहोरी |
नयनन्हिको फल बिसेष ब्रह्म अगुन सगुन बेष,
निरखहु तजि पलक, सफल जीवन लेखौ री ||

सुन्दर सीतासमेत सोभित करुनानिकेत,
सेवक सुख देत, लेत चितवत चित चोरी |
बरनत यह अमित रूप थकित निगम-नागभूप,
तुलसिदास छबि बिलोकि सारद भै भोरी ||