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गीतों का होना / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
गीत न होंगे
क्या गाओगे ?
हँस-हँस रोते
रो-रो गाते
आँसू-हँसी
राग-ध्वनि-रंजित
हर पल को
संगीत बनाते
लय-विहीन
हो गए अगर
तो कैसे फिर
सम पर आओगे ।
तन में कण्ठ
कण्ठ में स्वर है
स्वर शब्दों की
तरल धार ले
देह नदी
हर साँस लहर है
धारा को अनुकूल
किए बिन
दिशाहीन
बहते जाओगे ।
स्वर अनुभावन
भाव विभावन
ऋतु वैभव
विन्यास पाठ विधि
रचनाओं के
फागुन-सावन
मुक्त-प्रबंध
काव्य कौशल से
धवल नवल
रचते जाओगे ।