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गीले राजभवन में / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
पीड़ा से भाँवर तो डालूँ
पर कोई इतना समझा दे
मेरी उस दुखिया दुल्हन की
मुँह दिखलौनी कौन करेगा?
दुख को द्वारपाल बनवा दूँ
सुख को दे दूँ देश निकाला
हर आँसू का राजतिलक कर
सपनों को दे दूँ मृगछाला
करने को ये सब कर दूँगा
पर कोई इतना समझा दे
मेरे गीले राजभवन में
आँखमिचौनी कौन करेगा ?
ओढ़ घनी कटखनी उदासी
करके सूनेपन का आसन
प्यासे पानीदार नयन जब
लिखने बैठेंगे रामायन
फूटेंगे पर्वत से झरने
पर कोई इतना समझा दे
तब मेरे संन्यासी मन से
बात सलोनी कौन करेगा ?