भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुंजय जय–जय भारती / सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिंया न राजा हिंया न रानी
सबके देश पियारा है
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
सब मेँ भाई चारा है
गाँव-गाँव मेँ नगर-डगर मेँ
गुंजय जय–जय भारती
झूम-झूम के भारत जनता
गावय गांधी आरती ।
मरघट से पनघट तक कैसन
रूप गंध अलसात हैं
बंजर भूइयाँ विहंस रहल आउ
सगरो सुख अलसात हैं
गूँगा गावय गीत सोहावन
मरिया बन गेल मालती
गुंजय जय–जय भारती ।
मड़िया के झंकाय इंजोरिया
मधु रस से मातल हर कोर
गदरैलय जन-जन के भाषा
उतर पडल है सुख के भोर
सुघड़ गोरिया झूम रहल कि
बुढ़ियन ओढ़े बरसाती
गुंजय जय–जय भारती ।