गुड़गू मामा / कुमार कृष्ण
बाज़ार से गुजरते हुए मेरा बच्चा
एक ज़रूरी चीज़ खरीदने की माँग रखता है
मिठाई या चाबी वाले खिलौनों में
उसकी कोई दिलचस्पी नहीं
वह गब्बर -गन खरीदने की बात करता है।
मैं टालने की कोशिश में कहता हूँ-
'यह पटाखों का नहीं
बरसात का मौसम है
बरसात के मौसम में हर पटाखा
धोखे के पास सोता है
बारूद की तासीर जानना चाहते हो तो
धूप में तपे हुए दिन से पूछो
धूप और बारूद दोनों ही
धमाके के बहुत करीब होते हैं।'
बच्चा कुछ नहीं सुनता
एक ही साँस में कहता है-
'पापा, गुड़गू मामा तो बरसात में ही पटाखे चलाता है
बार-बार गरजकर डराता है
आसमान से ज़मीन तक फैली
चमकदार आँखें
न खेलने देती हैं न सोने
मैं गब्बर-गन से मुकाबला करूँगा
गुड़गू मामा पानी बरसाता है तो कोई बात नहीं
मैं आग के सामने पटाखे गर्म करूँगा।'
बच्चा लगातार बोलते हुए पूछता है-
'गुड़गू मामा की शक्ल किससे मिलती है?'
'मैं नहीं जानता बेटा,
मैं तो बस इतना भर जानता हूँ
यह शब्द मुझे मेरे दादा से मिला
मैंने तुम्हें सौंप दिया
वैसे लोग इसे
आसमानी बिजली भी कहते हैं
उससे मुकाबले की बात
मैं नहीं सोच सका
तुम भी अपने साथ
पूरे स्कूल को शामिल कर लो।
गब्बर-गन खरीदने से पहले
बहुत ज़रूरी है एक बात जानना
बन्दूक के साथ होना
जंगल के साथ होना है।
गुड़गू मामा डर तो सकता है
पूरी तरह मर नहीं सकता।
गुड़गू मामा ने तुम्हारे हर पटाखे में
पानी भर दिया है
तुम स्कूल के गीत में
उसकी हरकतें भर दो
गब्बर-गन खरीदने की जगह
खुद को
पटाखों की तकलीफ़ में शामिल कर लो।'