भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुदगुदी / अनुराग वत्स
Kavita Kosh से
तुम्हारी हँसी की अलगनी पर मेरी नींद सूख रही है ।
तुम उसे दिन ढले ले आओगी कमरे में, तहा कर रखोगी सपने में ।
मैं उसे पहन कर कल काम पर जाऊँगा और मुझे दिन भर होगी गुदगुदी ।