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गुनाह यूं भी होता है / शशि सहगल
Kavita Kosh से
सुना है
मेरे हमदर्दों ने
मेरे खिलाफ़
एक साज़िश करने का
नेक ख़याल किया है।
मुझे ज़लील करने के लिए
तमाम हमदर्दों को
खुली जगह इकट्ठा कर
मुझे
मेरी अस्मिता से जूझने का मौका दिया है।
जानते हैं सभी
वह सब मैंने नहीं किया
पर
बड़ी खूबसूरती के साथ
साबित हो गया कि
मैं ही गुनहगार हूँ।
इस हालत में मैं
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना चाहती हूँ
पर जाने क्यों
मेरी जीभ
तालू से चिपके चटखने लगी है।
अब आत्मविश्वास की चादर ओढ़
बड़ी मासूमियत से
कबूल कर लिया है/वह गुनाह
जो मैंने
कभी नहीं किया।