भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुब्बारे / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
मम्मी, वह देखो गुब्बारे!
आया गुब्बारे वाला।
गुड़िया लेगी, मैं भी लूँगा,
मचल रहा मन मतवाला॥
रंग रंग के, प्यारे प्यारे,
कुछ पतले से, कुछ मोटे।
लिए हुए आकार बहुत से,
कुछ लम्बे हैं, कुछ छोटे॥
मम्मी, मैं ले लूँ पीला या
फिर नीला लेकर खेलूँ।
गुड़िया को दो चार दिला दो,
मन करता मैं सब ले लूँ॥
कुछ पर बिन्दु, कुछ पर रेखा।
किसी किसी पर हैं तारे।
मम्मी, तुम कितनी प्यारी हो,
दिलवा दो न गुब्बारे॥