भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरुद्वारा / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरुद्वारा
मुक्त कंठ से
गुरु ने पुकारा
बिना भेद भाव।
न जाति
न धर्म का दुराव
एक ही धर्म
करिये सत्कर्म
बुराई से लड़ाई
विजयी हो सच्चाई ।
रखिये
देश के लिये
मर मिटने का जज़्बा ।
साथ साथ चले
संगत और पंगत ।
बहे सदैव
 प्रेम की धारा
कहता गुरुद्वारा ।