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गुलाब / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी
Kavita Kosh से
गुलाब शिशु की गुलाबिया उंगलियों बीच
मीचे जाते हैं मुग्ध उत्सुकता में.
फिर, कैपरी पैंट पहना हुआ किशोर
तोड़ता-बिखेरता फिरता है उन्हें तिरस्कारपूर्वक.
फिर वे बनते हैं प्यार के उपहार
बहुत चूमे जाते और मुरझाते.
आख़िर में, सौम्य और शांतमना उम्र के लोग
अपने उपनगरीय बंगलों के छोटे से बाग़ में,
पोसते हैं उन्हें:
संसार के एक बड़े हिस्से को
उनके काँटें प्रस्तुत होते हैं!