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गुल्लक / पवन करण
Kavita Kosh से
बिटिया बड़े जतन से सिक्के जोड़ती
कान से सटाकर देखती बजाकर
गुल्लक में सिक्के खन-खन करते
पिता के सामने गुल्लक रखती
उसकी हथेली पर गुल्लक में भरने
एक सिक्का और रखते पिता
बिटिया जाती गुल्लक छुपाती माँ हँसती
बिटिया बड़ी हो चुकी, ब्याह हो चुका
जा चुकी अपने घर
कहाँ आ पाती है पिता के घर
चिट्ठियाँ आती हैं
जब कोई चिट्ठी उसकी आती है
घर में बसी उसकी यादें
गुल्लक में भरे सिक्कों-सी
खन-खन बजती हैं