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गूँजेगी आवाज़ / अज्ञेय

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गूँजेगी आवाज़
पर सुनाई नहीं देगी।

हाथ उठेंगे, टटोलेंगे,
पर पकड़ाई नहीं पावेंगे।

लहकेगी आग, आग, आग
पर दिखाई नहीं देगी।

जल जाएँगे नगर, समाज, सरकारें,
अरमान, कृतित्व, आकांक्षाएँ :
नहीं मरेगा, विश्वास :
छूट जाएँगी रासें, पतवारें, कुंजियाँ, हत्थे,
नहीं निकलेगी गले की फाँस।

टूट जाएगी मानवता
नहीं चुकेगी कमबख्त मानव की साँस-
धौंकनी जो सुलगाती रहेगी
दबी हुई चिनगारियाँ।

घुटन और धुएँ को
कँपाएगी लहर :
गूँजेगी आवाज़
पर सुनाई नहीं देगी...

नयी दिल्ली, 28 सितम्बर, 1968