भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गूंगे अंधेरों में / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ मातृभाषा !
दया करो हमारे नवजात बच्चों पर
कहाँ जाएंगे हम तुम्हारे बिना
इन गूंगे अंधेरों में
गहमागहमी भरी सड़कों पर दौड़ती हुई
दूर-दराज़ शहर की बसों के दरवाज़ों पर
सवारियों के लटकते गुच्छों के बीच
फँसे हम याद करते हुए अपने गाँव
पूछेंगे ख़ुद से कौन हैं यहाँ हम
क्या है हमारा पता
फिर मज़बूती से पकड़े रखेंगे
                     खिड़की के हत्थे को
और अगले स्टापों पर उतरते जाएंगे भीड़ में