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गोठुल्ला / मनोज शांडिल्य
Kavita Kosh से
हमर अंतर्मन मे कतहु
सदति पजरल रहैत अछि
इर्खाक एक प्राचीन चूल्हि
गोठुल्ला सेहो
रहैत अछि भरले
डाहक किरासन ढारि-ढारि
धधकओने रहैत छी एकरा
सुआदि-सुआदि खाइत रहैत छी
झरकल, कार्बोनाइज़्ड कंद-मूल
आ बदलैत रहैत अछि हमर प्राणवायु
कॉन्सेन्ट्रेटेड एसिड मे
नचैत रहैत अछि कोटिशः रक्त-कोशिका
निछछ मदमत्त भेल
देहक पोर-पोर सँ
ठाँहि-पठाँहि
ठाम-ठाम
छोड़ैत रहैत छी ई एसिड
आ होइत रहैत छी
आत्मविभोर
चलैत रहैत अछि साँसक
आरोह-अवरोह
अभिभूत छी हम
सगरो देखि रहल छी
छटपटाइत संवेदनाक पसार
निरंतर भ’ रहल अछि
हमर गोठुल्लाक विस्तार!