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गोड़ के छापे / रामकृष्ण
Kavita Kosh से
तोरे ला मीरा -
एगो घर
एगो अँगना
एगो कुइँआँ
एगो ढ़ावा
एगो चौपाल
एगो खरिहान
एक सूप खुसी
एक्के असमान मे
पसरे के असरा -
पोसली हल।
तोरे ला मीरा-
सीमाना के गेंड़ा से
भनसा घर के दुआरी तक
पसार देली हल
आँख के जोत।
गली-दरगली
बधार के अंगे-अंग
भींज गेल हे -
हमरे छोहे/गन्हे
जोते-जोत।
जखनी चिहुँकल हल
तोर हिरदा में
कइसनो पीर
हमर कोइल के बोली
बन जाहल परतीत
अधरतिओ।
पीपर के छहुरी
गंगाजी के अरारा
बादर के पानी
फगुनी बयार
केकर अप्पन
केकर आन?
सबके हे... सबके हे... सब...
आझो असरौले ही ओइसहीं
चान-सुरुज निअन
पानी-बतास निअन
कि अदमी...
कहिओ तो बनत -
अदमी
कहिओ तो चीन्हत
अपन गोड़ के छाप।