गोधूलि होने को हुई है... / आनंद कुमार द्विवेदी
वेदना के वेग से
ये हृदय तड़पा
अश्रु टपका
रेत में
फिर अश्रु टपका
थरथरायी लौ
हथेली ने बचाया
जल रही है,
लड़खड़ाई साँस
फिर संभली जतन से
चल रही है,
पेड़ से पत्ता गिरा
ये दृश्य है
अलगाव है
या मृत्यु है ...
बस समय जाने
फड़फड़ा कर डाल से
पंक्षी उड़ा...
संघर्ष है
या मुक्ति है ...
बस समय जाने
इस गहन एकान्त में
फिर जोर से
क्यों हृदय धड़का
हृदय तड़पा................
बादलों के मध्य
नारंगी दिवाकर
कर रहा है चित्रकारी
अस्त होगा,
मन परिक्रमा कर रहा है अनवरत
ब्रह्माण्ड की,
अब पस्त होगा
आ sss ...
आ चलें
गोधूलि होने को हुई है
लौट भी चल,
हर घड़ी हर मोड़ पर
आज भी
दुनिया नई है
ठहर दो पल
हाय ये चलना ठहरना
खेल है ऐसे
कि जैसे
काल का ...
बस अंग फड़का
हृदय तड़पा
वेदना के वेग से
ये हृदय तड़पा
अश्रु टपका
रेत में
फिर अश्रु टपका