भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोहार / नवीन ठाकुर 'संधि'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखोॅ धरती होलै बीरान,
आवेॅ तोहें जागोॅ किसान

जैठ मास तबी गेलै,
केला, केतारी कुरथी मरी गेलै
करेॅ तोहेॅ एकरोॅ तजबीज
जे बचलोॅ-बचावोॅ बीज
छोड़ेॅ तोहें आपनोॅ विधान
देखोॅ धरती होलै बीरान,

जीव जंतु करेॅ गोहार,
जागोॅ किसान लंगोटिया यार।
वर्शा मास एैलेॅ अखार,
रिमझिम-रिमझिम झर-झर फुहार।
तोरेह पर छौं ‘‘संधि’’ के निदान,
देखोॅ धरती होलै बीरान,
आवें...