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गौं अर सैर / अश्विनी गौड 'लक्की'

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गौन पूछि सैर से,
यार तु इन बतौ
तु हर घडि अपडेट च,
सुख-सुविधोन, लकदक,
बिजली-पाणी, चखळ-पखळ ,
सैर ब्वनू-
मै दिन-रात बिज्यू छूं-उनिंदू छूं,
मनख्यू भिभडाट मा,
गंदगी का क्वन्कुन,
कुरच्यू छू,
मैं निरग्वस्यूं सी पैणू हरच्यूं छू।
रंगिळि-पिंगळि दुन्या मा,
अणमेल
मनख्यू का बीच,
मैं कणांणू छू!
अपणी एक खास
संस्कृति बणाणू छौ, और्यूकि पच्छ्याण
हरचाणू छू,
मनख्याळा, मनख्यूं कि,
दुनिया से दूरऽ--
मनख्याता भौ, खुजाणू छू,
न पूछ !
ये धुञा माटा दगडि,
झणि क्या-क्या खाणू छू,
दिन-रात कतिग्या पाप लुकाणू छू।
मैं सैर बणी
पछतांणू छू।