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गौरैया / केशव मोहन पाण्डेय

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जइसे दूध-दही ढोवे
सबके सेहत के चिंता करे वाला
गाँव के ग्वालिन हऽ
गौरैया
एक-एक फूल के चिन्हें वाला
मालिन हऽ।
अँचरा के खोंइछा हऽ
विदाई के बयना हऽ
अधर के मुस्कान हऽ
लोर भरल नैना हऽ।
चूड़िहारिन जस
सबके घर के खबर राखेले
डेहरी भरी कि नाऽ
खेतवे देख के
अनाज के आवग भाखेले।
गौरैया,
सबके देयादिन हऽ
ननद हऽ
धूरा में लोटाऽ के
बेलावे बरखा वाला जलद हऽ।
रूखल-सूखल थरिया में
चटकदार तिअना हऽ
आजान करत मुस्तफा
त भजन गावत जिअना हऽ।
ओरी के शोभा
बड़ेरी के आधार हऽ
चमेली के बगीचा में
गमकत सदाबहार हऽ।
दीदी खातिर ऊ
पिड़िया के पावन गोबर हऽ,
काच-कूच कउआ करत
माई के सोहर हऽ।
तृण-तृण ढो के
बाबूजी के बनावल खोंता हऽ,
रेड़ियों के तेल से महके जवन
माई के ऊ झोंटा हऽ।
झनके ना कबो ऊ
फगुआ के बाजत झाँझ-पखावज हऽ,
दूबरा के मउगी जस
गाँव भर के ना भावज हऽ।
गौरैया तऽ
रिश्ता हऽ, रीत हऽ,
चंचल मन के गीत हऽ।
फेरु काहें बिलात बिआ
मिल के तनी सोंची ना
ओह पाँखी के पँखिया के
बेदर्दी से नोंची ना।
हर भरल गाँव से
हर भरल घर से
हर हरिहर पेड़ से
ओह फुरगुद्दी के वास्ता बा,
एह बदलत जमाना में
भले बिलात बिआ बाकिर -
आजुओ ओकर
सोंझके रास्ता बाऽ।
आजुओ
भरमावे वाला
भरमावते बा गौरैया के
रोज दे के
नया-नया लुभावना,
जमाना भले बदलता
बाकिर आजुओ
चिरई के जान जाव
लइका के खेलवना।