ग्यारह सितंबर / कुमार मुकुल
यह उनका अपना ही विशाल माथा था
जो भरभराकर ढहा आ रहा था
ख़ुद उन्हीं के क़दमों में
और भयाक्रांत भाग रहे थे वे
भाग जाना चाह रहे थे
अपने ही माथे की तनी भृकुटी से
व अपनी ही तीसरी आँख के
वैश्विक प्रकोप से
हिरोशिमा-नागासाकी नहीं था वह
वियतनाम-इराक भी नहीं था
यह उनका अपना ही
सर्वग्रासी, महाबलशाली हाथ था
जो अपना ही मुँह जाब रहा था
उनके ही हथियार थे
बारूद भी उनके ही कारखानों की थी
उनकी अपनी ही खोदी खाइयाँ थीं
और सीढ़ियाँ कम पड़ गई थीं
और उनके पाँव
लाचारी के जलजले में
धँसे जा रहे थे
न्यूटन की गति का तीसरा नियम था यह
जिसे असंख्य बार बेच चुके थे वह
पर जो आज उनके ही घर में
लागू हो रहा था पहली बार
बिक रहा था उनके ही हाथों
उनकी अपनी ही सर्वद्रष्टा आँख थी
कैमरे भी उनके ही थे
जो दुनिया को सब-कुछ दिखा रहे थे
अनगिनत त्रासदियों को
फ़िल्मा चुके थे वे
आज वह फ़िल्म
वे ख़ुद देख रहे थे।