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घटित होती हुई साँझ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
सांझ से पहले हमें वहां पहुंचना है
और देखेंगे हम सूर्यास्त।
यह किनारे की भूमि
जहां से धीरे-धीरे सागर में अस्त होता है सूरज,
बस आखिरी किरणों की झलक
नारियल के दो पेड़ों पर
जिनके बीचोंबीच से गुजरती हुई छोटी सी नाव।
हमारी हर पल दृष्टि नाव पर
मद्धिम होती जा रही है जिसकी झलक
बैठा हुआ आदमी उसमें
दिखाई देता है जैसे बिंदु पेंसिल का।
किरणों का गिरना और उठना लहरों पर
और लौटते हुए पक्षियों की परछाई का स्पर्श जल पर।
यहां से कितने सारे पक्षी उड़े
सबने वापसी दर्ज की लौटने की,
अंतिम पक्षी की उड़ान के साथ
अस्त होता हुआ सूरज
चारों तरफ अंधेरे की लकीरें
अपना काला रंग भरती हुई
और हमारी उत्सुकता खत्म हो चुकी हैं अब।