भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घड़ी / हरे प्रकाश उपाध्याय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दुनिया की सभी घड़ियाँ
एक-सा समय नहीं देतीं
हमारे देश में अभी कुछ बजता है
तो इंग्लैंड में कुछ
फ्रांस में कुछ
अमेरिका में कुछ....


यहाँ तक कि
एक देश के भीतर भी सभी
घड़ियों में एक-सा समय नहीं बजता
समलन हुक्मरान की कलाई पर कुछ बजता है
मज़दूर की कलाई पर कुछ
अफ़सरान की कलाई पर कुछ

मन्दिर की घड़ी में जो बजता है
ठीक-ठीक वही चर्च की घड़ी में नहीं बजता है
मस्जिद की घड़ी को मौलवी
अपने हिसाब से चलाता है
और सबसे अलग समय देती है
संसद की घड़ी

कुछ लोग अपनी घड़ी
अपनी जेब में रखते हैं
और अपना समय
अपने हिसाब से देखते हैं
पूछने पर अपनी मर्ज़ी से
कभी ग़लत
कभी सही बताते हैं।

मोहनदास करमचन्द गाँधी
अपनी घड़ी अपनी कमर में कसकर
उनके लिए लड़ते थे
जिनके पास घड़ी नहीं थी
और जब मारे गये वे
उनकी घड़ी बिगाड़ दी
उनके चेलों-चपाटों ने
कहना कठिन है अब उनकी घड़ी कहाँ है
और कौन-कौन पुर्ज़े ठीक हैं उसके

हमारी घड़ी
अकसर बिगड़ी रहती है
हमारा समय गड़बड़ चलता है
हमारे धनवान पड़ोसी के घर में
जो घड़ी है
उसे हमारी-आपकी क्या पड़ी है!