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घना अँधेरा हुआ अवध में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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सरयू-जल में
सूरज डूबा
घना अँधेरा हुआ अवध में

झूठी रामायण की घर-घर फिरी दुहाई
रामराज की महिमा भी है कहीं बिलाई

रामनाम का
कीर्तन सुनकर
ऊँघ रहा है सुआ अवध में

सुखी हुए ठग – संतों को व्यापीं विपदाएँ
दाँव लगी है सिया-राम की मर्यादाएँ

चतुर हुए
लवकुश के वंशज
खेल रहे हैं जुआ अवध में

राजसभा में बातें होतीं सिर्फ़ हवाई
बजा रहे सब सिंधु-पार की ही शहनाई

भटक रही है
राजमार्ग पर
गुरु वसिष्ठ की दुआ अवध में