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घर-गौं / दिनेश ध्यानी
Kavita Kosh से
अज्यों तलक बी उपरि धरति म नि रच्यां।
रोटी-रोजगार की खातिर छां अयां
क्वी बि बौडिकि मुल्क जाण नि लग्यां।
जलडा अपणां पाड म छोडिक अंया
अपखुस्या सैरौं म गमलौं म सज्यां।
आस्था-बीस्था कै कमै यख देसु म
धीत हमरि अजि बि अपणा मुल्क चा।
देवि-द्यबता , पितृ अपणां पुज्दा छां
रीति-रिवाज तीज त्यौहार मनदा छां।
याद औणी कूडी, पुंगडी छनुडी की
खुद लगीं मीं अपणां पांडा, वोबरा की।
मन पराण अपणां पाड म छन बस्यां
बाळि सगोडी आंख्यों म छन रिटणां।
भलु सुभौ भला मनखि छन मेरा पाड़ का
कनी भली छै हवा पाणी पाड की।
याद औणी कफ्फू हिलांस, घुघती की
अपण्य पर्यौ अर बाळपन का दगड्यौं की।