भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
रिमझिम बरसते सावन में
वह स्त्री
बेमतलब ही
एक से दूसरे कमरे में
आ-जा रही थी
एकाएक उसे लगा
बेटे ने ही
भड़भड़ाया था द्वार
कुछ वैसी ही
अधीर पुकार
भागती आई
साँकल हटाई
वही तो था !
चश्मा लगाए
अँधियारी एक आँख छिपाए
एक टाँग वाला
उसका लाल
बैसाखी पर
तन झुकाए।