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घर / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
एक दिन मैंने उस घर के पास से गुजरते हुए
ठहाकों का शोर सुना-
मैं रुक गया।
एक दिन मैंने उस घर के भीतर
किसी को सिसकते हुए सुना-
मैं रुक गया।
एक दिन मैंने
किसी नये जन्मे बच्चे के
रोने की आवाज़ सुनी-
मैं उस घर के सामने रुक गया।
एक दिन उस जगह से गुजरते हुए
मैंने देखा-
वहाँ कोई घर नहीं था