भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर / जया झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिनके जोड़ लोगो को

घर बनाते देखा है।

बाढ़ में बहते हुए

घर को बचाते देखा है।

गिरते हुए घर को

मज़बूत कराते देखा है।

शायद कभी गुस्से में

घर को जलाते देखा है।

पर कभी गिराने के लिए

अपने ही हाथों से, किसी को

घर सजाते देखा है?