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घर और वन और मन / भवानीप्रसाद मिश्र

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हवा
मेरे घर का चक्कर लगाकर
अभी वन में चली जाएगी

भेजेगी मन तक
बाँस के वन में गुँजाकर
बाँसुरी की आवाज़
एक हो जाएँगे
इस तरह
घर और वन और मन

हवा का आना
हवा का जाना
गूँजना बंसी का स्वर !